मय
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]मय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. ऊँट ।
२. अश्वतर । खच्चर ।
३. घोड़ा ।
४. सुख ।
५. एक देश का नाम ।
६. पुराणानुसार एक प्रसिद्ध दानव का नाम जो बड़ा शिल्पी था । उ॰— मय की सुता धौं की है मोहनी ह्वै मोह मन, आजु लौं, न सुनी सु तौ नैनन निहारिए ।—केशव (शब्द॰) । विशेष—इस असुरों और दैत्यों का शिल्पी कहते हैँ । वाल्भीकीय रामायण के उत्तरकांड़ मे मय को दिति का पुत्र 'दैत्य' लिखा है । मायावी और दुंदुभि को उसका पुत्र और मंदोदरी को उसकी कन्या लिखा है । त्रिपुर दानव के तीन नगरों को इसने बनाया था और महाभारत के अनुसार खांडव वन के भस्म होने पर इसने ही पांडवों का महल भी बनाया ।
७. अमोरिका के मेक्सिको नामक देश के प्राचीन अधिवासी जो किसी समय बहुत अधिक उन्नत और सभ्य थे और जिनकी सभ्यता भारतवसियों की सभ्यता से बहुत कुछ मिलती जुलती है ।
मय ^२ प्रत्य॰ [सं॰] [स्त्री॰ मयी] तद्धित का एक प्रत्यय जो तद्रूप, विकार और प्राचुर्य अर्थ में शब्दों के साथ लगाया जाता है । जैसे, आनंदमय । उ॰—(क) तद्रुप—सिया राममय सब जग जानी । करौं प्रणाम जोरि जुग पानी ।—तुलसी (शब्द॰) ।(ख) विकार— अमिय मूरमय चूरन चारू । समन सकल भव रुज परिवारू ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) प्राचूर्य—मुद मंगलमव मंत समाजू । जो जग जंगम तीरथ- राजू ।—तूलसी (शब्द॰) ।
मय ^३ अव्य॰ [अ॰] संयुक्त । सहित । साथ । जैसे, मयमूद सूद सहित ।
मय संज्ञा स्त्री॰ [फा॰] मदिरा । मद्य । शराब । यौ॰—मयखाना=मदिरागृह । मयपरस्त=शराबी ।
मय संज्ञा पुं॰ [सं॰ मद, प्रा॰, मय] गर्व । अहता । घमंड ।