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भ्रम

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भ्रम संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी पदार्थ को और का और समझना । किसी चीज या बात को कुछ का कुछ समझना । मिथ्या ज्ञान । भ्रांति । धोखा ।

२. संशय । संदेह । शक । क्रि॰ प्र॰—में डालना ।—में पड़ना ।—होना ।

३. एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी का शरीर चलने के समय चक्कर खाता है और वह प्रायः जमीन पर पड़ा रहता है । यह रोग मूर्छा के अंतर्गत माना जाता है ।

४. मूर्छा बेहोशी । उ॰—भ्रम होइ ताहि जा कूर चीत ।—पृ॰ रा॰, ६ । ८८ ।

५. नल । पनाला ।

६. कुम्हार का चाक ।

७. भ्रमण । घूमना । फिरना ।

८. वह पदार्थ जो चक्राकार घूमता हो । चारों ओर घूमनेवाली चीज ।

९. अंबुनिगंम । स्त्रोत (को॰) ।

१०. कुंद नाम का एक यंत्र । शाण । खराद (को॰) ।

११. मार्कंडेय पुराण के अनुसार योगियों के योग में होनेवाले पाँच प्रकार के विध्नों मे से एक प्रकार का विघ्न या उपसगं जिसमें योगी सब प्रकार के आचार आदि का परित्याग कर देता है और उसका मन निरवलंब की भाँति इधर उधर भटकता रहता है ।

१२. चक्की (को॰) ।

१३. छाता (को॰) । १४ घेरा । परिधि (को॰) ।

भ्रम ^२ वि॰

१. घूमनेवाला । चक्कर काटनेवाला ।

२. भ्रमण- करनेवाला । चलनेवाला ।

भ्रम ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ सम्भ्रम] मान प्रतिष्ठा । इज्जत । उ॰— जस अति संकट पंडवन्ह भएउ भीव बँदि छोर । तस परबस पिउ काढ़हु राखि लेहु भ्रम मोर ।—जायसी (शब्द॰) ।