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भूकप

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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भूकप संज्ञा पुं॰ [सं॰ भूकम्प] पृथ्वी कै ऊपरी भाग का सहसा कुछ प्राकृतिक कारणों से हिल उठाना । भूचाल । भूड़ोल । जलजला । विशेष— अद्यापि पृथ्वी का ऊपरी भाग बिलकुल ठढ़ा हो गया है, तथापि इसके गर्भ में अभी बहुत अधिक आग तथा गरमी है । यह आग या गरमी कई रुपों में प्रकट होती है, जिसमें से एक रूप ज्वालामुखी पर्वत भी है । जब कुछ विशेष कारणों से भूगर्भ की यह अग्नि विशेष प्रज्वलित अथवा शीतल होती है तब भूगर्भ में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं जिनके कारण पृथ्वी का ऊपरी भाग भी हिलने या काँपने लगता है । इसी को भूकंप कहते हैं । कभी तो इस कंप का मान इतना सुक्ष्म होता है कि साधारणतः हम लोगों को बिना यत्रों की सहायता के उसका ज्ञान भी नहीं होता, और कभी इतना भीषण होता है कि उसके कारण पृथ्वी में बड़ी बड़ी दरारें पड़ जाती हैं, बड़ी बड़ी इमारतें गिर जाती है और यहाँ तक कि कभी कभी जल के स्थान में स्थल और स्थल के स्थान में जल हो जाता है । कुछ भुकपों का विस्तार तो दस बीस मील तक ही होता है और कुछ का सैकड़ों हजारो ं मीलों एक । कभी तो एक ही दो सेकेंड़ में दो चार बार पृथ्वी हिलने के बाद भुकंप रुक जाता है और कभी लगातार मिनटों तक रहता है । कभी कभी तो रह रहकर लगातार सप्ताहों और महीनों तक पृथ्वी हिलती रहती है । भुकंप से कभी कभी सैकड़ों हजारों मनुष्यों के प्राण तक चले जाते है, और लाखों कराड़ों की संपत्ति का नाश हो जाता है । जिन देशों में ज्वालामुखी पर्वत अधिक होते हैं उन्हीं में भूकप भी अधिक होते हैं । भूमध्यसागर, प्रशांत महामागर के तट, ईस्ट- इंड़ीज टापुओं में प्रायः भूकंप हुआ करते है; और उत्तरी अमेरिका के उत्तरपश्र्चिमी भाग, दक्षिण अमेरिका के पूर्वी भाग, एशिया के उत्तरी भाग और अफीका के बहुत बड़े भाग में बहुत कम भुकंप होता है । स्थल के अतिरिक्त जल में भी भूकंप होता है जिसका रूप कभी बहुत भीषण होता है । हिंदुओं में से बहुतों का विश्वास है कि पृथ्वी को उठानेवाले दिग्गजो अथवा शेषनाग के सिर के हिंलने से भूकप होता है । क्रि॰ प्र॰— आना ।—होना ।