फर
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फर पु ‡ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ फल]
१. दे॰ 'फल' । उ॰—सास ससुर सम मुनितिय मुनिबर । असनु अमिय संमःकंद मूल फर ।—मानस, २ । १४० । यौ॰—फल फउल = फल और फूल । उ—फर फूलन कै इंछा बारी ।—जायसी ग्रं॰ (गुप्त), पृ॰ २४६ । (ख) शाखा पत्र और फर फूला ।—सुंदर॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ १११ ।
२. दे॰ 'फड़' ।
३. सामना । मुकाबिला । रण । युद्ध । उ॰— भगे बलीमुख महाबली लखि फिरें न फर पर झेरे । अंगद अरु हनुमंत पाय द्रुत बार बार अस टेरे ।—रघुराज (शब्द॰) ।
४. बिछावन । बिछौना । उ॰—सूल से फूलन के फर पै तिय फूल छरी सी परी मुरझाती ।—(शब्द॰) ।
५. बाण का अगला नोकादार हिस्सा । फल । उ॰—बिनु फर बान राम तेहि मारा ।—मानस, १ । २१० ।
फर ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] ढाल [को॰] ।